Ramkatha Event – Day 2
श्रीराम कथा के दूसरे दिन भी भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली, लगभग 12 हजार लोग कथा सुनने पहुंचे। कथा के दौरान बच्चा, बूढ़ा, जवान हर कोई भजनों पर झूम उठा। गर्मियों की छुट्टियां होने के कारण कथा में बुजुर्गों के साथ-साथ बच्चों और युवाओं में काफी उत्साह देखने को मिला। इस दौरान मोरारी बापू ने मानव रचना शैक्षणिक संस्थान की ओर से किए गए इंतजामों की काफी तारीफ की। बापू ने कहा, गर्मी के मौसम में इससे अच्छा इंतजाम नहीं हो सकता। उन्होंने मानव रचना शैक्षणिक संस्थान की मुख्य संरक्षक सत्या भल्ला का धन्यवाद किया और उनकी संतान के प्रति प्रसन्नता व्यक्त की।
मोरारी बापू ने कथा के दूसरे दिन कहा, श्रीराम कथा छोटी नहीं है, बहुत विशाल है, इस पंडाल से बाहर निकल जाती है। बापू ने कहा कि, यह धर्म प्रवचन है, लेकिन अगर उनके शब्दों से कोई आहत हो जाए तो इसमें क्या हो सकता है। भगवान राम ने विश्वामित्रा के यज्ञ की राक्षसों से रक्षा की, वही राम जब रावन यज्ञ करता है तो उसका यज्ञ तोड़ने को बोलते हैं। बापू ने कहा, देवताओं को प्रसन्न करके अगर हिंसा करने की ताकत लेनी है तो ये गलत है। कलयुग में एकता में बहुत शक्ति है, हम सभी इस पंडाल में शांत बैठे हैं, एकता के साथ, तो इस पंडाल में शक्ति पैदा हो रही है, लेकिन एकता आतंक मचाने को कई जाए तो वह गलत है। बापू ने कहा, सुख को जन्म दो। अगर आपके पास सौ कीमती साड़ी हों तो, उसमें से 10 ऐसे लोगों को दो जिसके पास कपड़े नहीं हैं। बापू ने कहा अगर आप डॉक्टर हैं और आपके पास अगर 100 मरीज आएं तो 10 मरीजों का निशुल्क ईलाज करें, यह धर्म की शुद्धि है। एक बार एक व्यक्ति मेरे पास आया और बोला बाबा मेरा हाथ देख कर बताओ मेरा भविष्य क्या है, बाबा आप जगद गुरु हो,,,मैंने कहा बेटा आखरी भविष्य तो चिता पर सोना है। एक बार तू चिता पर लेटेगा तो धू-धू हो जाएगा। तू जो इच्छा करेगा वो पूरी हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती। बापू ने कहा शरीर को गुरु मानो, चार गुरु होते हैं पहला विवेक, जिसके पास विवेक आ गया वो भी एक गुरु है,। दूसरा, व्यक्ति के रूप में गुरु। तीसरा, सदग्रंथ एक गुरु है, ग्रंथ जो गुरु माना, जो पंजाब में हुआ, व्यक्ति गिर सकता है लेकिन शस्त्र नहीं, इसलिए बड़ा प्यारा नाम है श्री गुरु ग्रंथ साहिब। चौथा, किसी की कही से सुना हुआ को एक सूत्र हमारे जीवन का गुरु बन जाता है। बापू ने कहा जिंदगी में चार चीजें मत भूलो, मां, मातृ भाषा, मातृ संस्था और मातृ भूमि। सत्य बोले लेकिन हमेशा प्रिय बोले, वाणी में अमृत रखो, जहर मत घोलो। सतयुग का पहला लक्षण है शुद्ध सत्व, यानी की, राग नहीं, द्वेश नहीं, काम नहीं, हिंसा नहीं, ईर्ष्या नहीं, लोभ नहीं।